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"अब और नहीं, अब हम किसान अपना हक़ लेकर रहेंगे"

नैनों में था रास्ता हृदय में था गाँव हुई न पूरी यात्रा छलनी हो गए पाँव

निदा फ़ाज़ली

छोटे किसान अब खून के आंसू रोते हैं चुपचाप सहमे से बहुत कुछ सहते हैं इनके घरों में औलाद नही बस दो हाथ पैदा होते हैं कलम पकड़े तो बेरोजगार होते हल पकड़े तो आत्महत्या करते हैं

प्रणव प्रकाश

घर खेत छोड़ परदेश में मजदूरी करने वाले किसान भाइयों की दशा हम ने घर की सलामती के लिए ख़ुद को घर से निकाल रक्खा है

अज़हर अदीब

सयानी होती बेटी, पढ़ाई करता बेटा और घर मे बूढ़े मातापिता वेक घर मे एक किसान का दर्द क्या कहूँ किस तरह से जीता हूँ ग़म को खाता हूँ आँसू पीता

हूँमीर असर

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